Saturday, June 5, 2021

कमिया

 "कमिया"


बहुत समय पहले की बात है,  किसी गाँव में एक किसान रहता था। वह रोज़ भोर में उठकर दूर झरनो से स्वच्छ पानी लेने जाया करता था। इसके लिए वह अपने साथ दो बड़े घड़े ले जाता था, जिन्हें वो डंडे में बाँध कर अपने कंधे पर दोनों और लटका लेता था। उनमे से एक घड़ा कहीं से फूटा हुआ था, और दूसरा एकदम सही था।

इस वजह से रोज घर पहुँँचते - पहुँँचते किसान के पास डेढ़ घड़ा पानी ही बच पाता था। ऐसा दो सालों से चल रहा था। सही घड़े को इस बात का घमंड था कि वो पूरा का पूरा पानी घर पहुँचाता है और उसके अन्दर कोई कमी नहीं है। वहीं दूसरी तरफ फूटा घड़ा इस बात से शर्मिंदा रहता था कि वो आधा पानी ही घर तक पहुँचा पाता है और किसान कि मेहनत बेकार चली जाती है।

फूटा घड़ा ये सब सोचकर बहुत परेशान रहने लगा और एक दिन उससे रहा नहीं गया।  उसने किसान से कहा: में खुद पर शर्मिंदा हुं और आपसे क्षमा मांगना चाहता हुं ?

किसान ने पूछा : क्यों ?

तुम किस बात से शर्मिंदा हो ?


शायद आप नहीं जानते पर में एक जगह से फूटा हुआ हुं और पिछले दो सालो से मुझे जितना पानी घर पहुँचाना चाहिए था बस उसका आधा ही पंहुचा पाया हुं।

मेरे अन्दर ये बहुत बड़ी कमी है और इस वजह से आपकी मेहनत बर्बाद होती रही है। फूटे घड़े ने दुखी होते हुए कहा।


किसान को घड़े की बात सुनकर थोड़ा दुःख हुआ और वह बोला: कोई बात नहीं .. में चाहता हूँ कि आज लौटते वक़्त तुम रास्ते में पड़ने वाले सुंदर फूलों को देखो।  घड़े ने वैसा ही किया, वह रास्ते भर सुंदर फूलों को देखता आया।  ऐसा करने से उसकी उदासी कुछ दूर हुई पर घर पहुँँचते - पहुँँचते  फिर उसके अंदर से आधा पानी गिर चुका था.. वो मायूस हो गया और किसान से क्षमा मांगने लगा!! 


किसान बोला शायद तुमने ध्यान नहीं दिया, पूरे रास्ते में जितने भी फूल थे... वो बस तुम्हारी तरफ ही थे, सही घड़े की तरफ एक भी फूल नहीं था। 


ऐसा इसलिए, क्योकिं,

में हमेशा से तुम्हारे अंदर की कमी को जानता था, और मैंने उसका लाभ उठाया.. मैंने तुम्हारे तरफ वाले रास्ते पर रंग - बिरंगे फूलों के  बिज बो दिए थे। तुम रोज थोड़ा - थोड़ा कर के उन्हें  सीचते रहे और  पूरे रास्ते को फूलो से एकदम खुबसूरत बना दिया। आज तुम्हारी वजह से ही में इन फूलों को भगवान को अर्पित कर पाता हुं और अपना घर सुंदर बना पाता हुं। तुम्हीं सोचो अगर तुम जैसे हो वैसे नहीं होते तो भला क्या में ये सबकुछ कर पाता ? 




                                                                ~ सिख ~


     दोस्तों हम सभी के अंदर कोई ना कोई कमी होती है, पर यही कमिया हमें अनोखा बनाती हैं। 

        हमें यह  सोचना चाहिए की उस कमी से लाभ उठाकर उसकी कमी को कैसे कम करें। 




                                                                  " संदेश " 


उस किसान की तरह हमें भी हर किसी को वो जैसा है वैसे ही स्वीकार करना चाहिए और उसकी अच्छाई की तरफ ध्यान देना चाहिए। जब हम ऐसा करेंगे तब " फूटा घड़ा " भी " अच्छे घड़े " से मूल्यवान हो जाएगा।






 नमस्ते

गौरीशंकर चौबे

स्वस्थ रहे ।। मस्त रहे।। व्यस्थ रहे.






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