Wednesday, January 18, 2023

"सुख - दुःख नज़रियों का खेल"

 

प्रोफेसर संजय हमेशा अपनी क्लास में बच्चों को कुछ नयी सीख दिया करते थे. एक दिन उन्होंने क्लास में घुसते ही बोला- आज मैं आप सबकी परीक्षा लूँगा. सारे छात्र डर गए , प्रोफेसर ने एक सफ़ेद लिफाफा निकाला और उसमें से सभी छात्रों को एक-एक प्रश्न पत्र देना शुरू कर दिया. वह प्रश्न पत्र को पलट कर सबकी मेज़ पर रखते जा रहे थे, जिससे कोई प्रश्न न पढ़ सके जब सभी छात्रों को प्रश्न पत्र मिल गया, तो प्रोफेसर बोले, अब आप सब शुरू कर सकते हो।



black-dotकिसी ने भी एक दूसरे की कॉपी मे झाँका या पूछने की कोशिश की, तो उसके नंबर काट लिए जाएंगे. सभी छात्रों ने प्रश्न पत्र पलटकर देखा और हैरानी से एक दूसरे की तरफ देखने लगे, प्रोफेसर बोले क्या हुआ- आप लोग इतने हैरान क्यू हो ? एक छात्र बोला, सर इसमें कोई प्रश्न तो है ही नहीं बस एक सादा कागज़ है और बीचों बीच एक काला बिंदु, हमें जवाब क्या देना है ?


प्रोफेसर बोले, इसे देख कर आपके मन में जो भी आए वह पीछे लिख दीजिये. आपके पास सिर्फ 10 मिनट का वक़्त है, सभी छात्रों ने लिखना शुरू कर दिया। 10 मिनट बाद प्रोफेसर ने सभी के उत्तर इकट्ठा किए और पूरे क्लास के सामने एक-एक कर के पढ़ने लगे. हर छात्र ने उस काले बिन्दु की व्याख्या लिखी थी।



किसी ने लिखा था – वह दो बिन्दुयों को मिलाकर बनाया गया है, किसी ने लिखा था – वह पहले चकोर था बाद में गोल बनाया गया है. प्रोफेसर बोले चिंता मत कीजिये, इस परीक्षा का अंको से कोई वास्ता नहीं है. लेकिन ज़रा सोचिए आप सब अपना जवाब सिर्फ एक काले बिन्दु के ऊपर दिया है. किसी ने उस खाली सफ़ेद हिस्से के बारे मे कुछ नहीं लिखा. सभी ने सोचते हुये हाँ मे सर हिलाया।


प्रोफेसर बोले- कुछ ऐसा ही हम अपनी ज़िंदगी के साथ भी करते हैं। काले दागों में इतना खो जाते हैं कि ज़िंदगी के सफ़ेद पन्नों पर नज़र ही नहीं जाती. यहाँ काले दाग से मेरा आशय है, हमारी ज़िंदगी कि तकलीफ़े, बीमारियाँ या कोई दुख, पर हमारी ज़िंदगी में कितना कुछ अच्छा है, जिसकी तरफ हमारी नज़र ही नहीं जाती है, जैसे कि हमारा परिवार, दोस्त, छोटी-छोटी खुशियाँ।



कभी सोचा है, हमारे पास परेशान और दुखी होने के लिए कितने कारण हैं, और खुश रहने के लिए कितने ? शायद अगर हम गिने तो, तो खुशी के कारण दुख के कारण से कई गुना ज्यादा मिलेंगे. मतलब खुश रहने के लिए हमारे पास बहुत सी वजहें हैं. सभी छात्र चुपचाप प्रोफेसर के बात सुन रहे थे।


प्रोफेसर ने छात्रों को जीवन को देखने का नया नज़रिया दिया था ।


"हम चाहे तो खुश रह सकते हैं या दुखी

यह सिर्फ नज़रियों का खेल है"



दोस्तों कहानी छोटी बेशक है लेकिन, अपने अंदर गंभीर सार छिपाये हुए है. सभी बच्चों को उस कोरे कागज पे एक काला बिंदु ही दिखाई दिया लेकिन इतना बड़ा कोरा कागज था उसकी तरफ किसी का ध्यान नहीं गया।



सच कहा गया है कहानी में कि छोटे से दुःख को लेकर हम अपना जीवन बर्बाद कर लेते हैं, लेकिन बड़ी बड़ी खुशियों पर हमारा ध्यान ही नहीं जाता. दोस्तों काले धब्बे से नजर हटाइये फिर देखिये खुश रहने की हजार वजहें आपको मिल जायेंगी।  






 







































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