Sunday, October 4, 2020

क्यों कुछ लोग अपनी जिंदगी में आगे नहीं बढ़ पाते- 8 कारण

क्या आपने कभी सोचा है? कि कुछ लोग तो ज़िंदगी कि हर एक ऊंचाई को छूते हैं, ज़िंदगी में सफल होते हैं,अपनी ज़िंदगी में बहुत आगे बढ़ते हैं। लेकिन कुछ लोग ज़िंदगी में आगे नहीं बढ़ पाते उनकी ज़िंदगी में आगे न बढ़ पाने की वजह क्या हैं? क्यों लोग अपनी ज़िंदगी में तरक्की नहीं कर पाते हैं? 

आपने अपने आस पास ऐसे बहुत से लोगों को देखा होगा, जिन्होंने अपनी ज़िन्दगी एक ही काम को करते हुए गुजार दी। वो आज से 10-15 साल पहले जिस काम को कर रहे थे, आज भी उसी काम को उसी तरह से कर रहे हैं। समय के अनुसार उनके साथ थोड़ा बहुत बदलाव तो हुआ लेकिन वे वहीँ के वहीँ रहे। उन्होंने कभी अपनी जिंदगी को बदलने की या जिंदगी में कोई नया काम करने की कोशिश नहीं की और ना ही कभी अपनी ज़िन्दगी में आगे बढ़ने की कोशिश की।

दोस्तों आज मैं आपको 8 ऐसे कारण बताने जा रहा हूँ जिनकी वजह से कुछ लोग अपनी ज़िंदगी में आगे नहीं बढ़ पाते हैं। या अपनी life में तरक्की नहीं कर पाते हैं।


आइये कुछ उदाहरणों से इस बात को समझाता हूँ।

उदाहरण-1 

मेरे गाँव में एक स्कूल है। जहाँ से मैंने पाँचवी तक की पढाई की है। उस स्कूल के अध्यापक आज भी वहीँ हैं, जहाँ वो तब थे जब मैंने वहां एडमिशन लिया था। यानि आज से लगभग 22-23 साल पहले वो अध्यापक तथा उनका स्कूल जैसा था आज भी बिल्कुल वैसा ही है। वो आज भी उसी स्कूल में अध्यापक हैं और आज भी उस स्कूल की बिल्डिंग बिल्कुल वैसी ही है और स्कूल भी पाँचवी तक का ही है। हाँ वे अध्यापक थोड़े बूढ़े हो गये हैं।

उदाहरण-2

मेरे गाँव के उसी स्कूल के पास कुछ बनियों की दुकान हैं। जो मेरे जन्म से भी पहले की हैं। स्कूल टाइम पर मैं वहां से खाने पीने का सामान खरीदा करता था। आप यकीन नहीं मानेंगे कि आज लगभग 20-25 साल बाद भी कुछ दुकाने तो ऐसी की ऐसी ही हैं उनकी मरम्मत तक नहीं हुई है। और उन बनियों ने उसी छोटी सी दुकान में अपनी ज़िन्दगी गुजार दी।

उदाहरण-3

2011 में मैं एक कम्पनी में Design Engineer की पोस्ट पर गया। वहां मैंने देखा कि मेरे साथ काम करने वाले मेरे एक मित्र लगभग 16-17 साल से एक ही Position पर काम कर रहे हैं। और इतने सालों के अनुभव के बाद भी उनकी सैलरी मात्र 16000 Rs. Per Month थी। यानि 16 साल काम करने के बाद भी सैलरी मात्र 16000 Rs. Per Month. और 2011 मेरी सैलरी मात्र 2 साल के अनुभव के बाद 20000 Rs. Per Month थी। मेरे मित्र को मेरी सैलरी ज्यादा होने का दुःख था और मुझे उनके इतने वर्षों के अनुभव के बाद भी इतनी कम सैलरी होने पर अचम्भा और हैरानी दोनों थी।


किसी स्कूल के अध्यापक या चपरासी ने अपनी सारी जिंदगी वहीँ पर रहकर गुजार दी, किसी सरकारी क्लर्क ने अपनी सारी जिंदगी क्लर्क रहकर ही गुजार दी, पुलिस के किसी सिपाही ने, किसी सरकारी कर्मचारी ने, कपड़े सिलने वाले दर्जी ने, सब्जी बेचने वाले ने, चाट बेचने वाले ने, दुकान करने वाले ने या प्राइवेट नौकरी करने वाले ने या और भी बहुत से उदाहरण आपको अपने घर में, अपने आस पास या रिश्तेदारी में देखने को मिल जायेंगें।

जिन्होंने एक ही नौकरी या एक ही काम में अपनी सारी या आधी से भी ज्यादा जिंदगी गुजार दी। और हाँ आप भी उनमें से एक हो सकते हैं। और अगर नहीं हैं तो बहुत अच्छा।

दोस्तों, जिंदगी में आगे बढ़ने के, जिंदगी में तरक्की करने के, नौकरी में प्रोमोशन पाने या अपने खुद के काम या व्यवसाय को बढ़ाने के बहुत से मौके होते हैं, बहुत से तरीके होते हैं, और बहुत से रास्ते होते हैं। और बहुत से लोग उन मौके से, तरीको से, और रास्तों से अपनी जिंदगी में आगे बढ़ते हैं, तरक्की करते हैं और एक बेहतर जिंदगी जीते हैं।



















जातिप्रथा समाप्त करने का उपाय- Gaurishankar Chaubey

जातिवाद ने हिन्दुओ का  प्राचीन समय से  जिस प्रकार विघटन किया है  , क्षय किया है, प्रगति में बाधक बना है उसे देखते हुए कई समाज सुधारको और संगठनों ने समय समय पर जातिवाद को समाप्त करने के विभिन्न प्रयास किये और आज भी यदा कदा करते रहते हैं।
इन सुधारो में मुख्य तरीके होते हैं।

1- अंतर्जातीय विवाह

 

2- विभिन्न जातियों द्वारा आपस में सामूहिक भोजन 

राष्ट्रिय  स्वयं सेवक जैसे संगठन आज भी ‘समूहिक भोजन’ का आयोजन अपने कार्यकर्म में करते रहते हैं ,इसी प्रकार कोई संगठन हैं जो अंतर्जातीय विवाह भी करवाते रहते हैं। यह अच्छे प्रयास हो सकते हैं पर इनके वावजूद जातिवाद की मानसिकता जस की तस लोगो में विराजमान है , इन प्रयासों का समाज में असर पड़ता नहीं दिख रहा है यह सब मात्र दिखावा बन के रह गया है।

जातिवाद कैसे ख़त्म हो इसके विषय में बाबासाहब  ने जो उपाय बताया था वह गौर करने लायक है ,जिस पर ऐसे जातिवाद समाप्त करने वाले संगठनों का ध्यान नहीं जाता या वे देना ही नहीं चाहते । बाबा साहब ने जो उपाय और कारण बताया था यदि उन पर अब तक ध्यान दिया गया होता तो यह समस्या कब की समाप्त हो चुकी होती।

बाबा साहब ने कहा था – “जाती ईंटो की दीवार या कांटेदार तारो की लाइन जैसी कोई भौतिक  वस्तु नहीं है जो हिन्दुओ को मेल मिलाप से रोकती हो और जिसे तोडना आवश्यक हो। जाती एक धारणा है और यह एक मानसिक स्थिति है , अत: जाति को नष्ट करने का अर्थ भौतिक रुकावटो को दूर करना नहीं है । इसका अर्थ विचारात्मक परिवर्तन  से है, जाती व्यवस्था बुरी हो सकती है । जाती के आधार पर ऐसा घटिया आचरण किया जा सकता है , जिसे मानव के प्रति अमानुषता कहा जा सकता है । फिर भी यह स्वीकार करना होगा  की हिन्दू लोगो द्वारा जातिप्रथा मानने का कारण यह नहीं है उनका व्यवहार अमानुषिक और अन्याय पूर्ण होता है ।

वह जातपात इसलिए मानते हैं , क्यों की वे अत्यधिक धार्मिक होते हैं । अत: जात पात मानने में लोग दोषी नहीं हैं,मेरी राय में उनका धर्म दोषी है जिसके कारण जाति व्यवस्था की धारणा का जन्म हुआ है । यदि यह बात सही है तो स्पष्ट है की वह शत्रु जिसके साथ आपको संघर्ष करना है , वे लोग नहीं जो जातपात मानते हैं , बल्कि वे शास्त्र हैं , जिन्होंने जाती धर्म की शिक्षा दी है। अंतर्जातीय खान पान और अंतर्जातीय विवाहों का आयोजन करना इस हिसाब से निरर्थक तरीका है और यह ज्यादा कारगर सिद्ध नहीं हो सकता वास्तविक उपचार यह है की शास्त्रों से लोगो का विश्वास को समाप्त किया जाए। 
 
यदि शास्त्रों ने लोगो के धर्म ,विश्वास और विचारो पर अपना प्रभाव जारी रखा तो आप कैसे सफल होंगे?  शास्त्रों की सत्ता का विरोध किये बिना ,लोगो को उनकी पवित्रता और दंड विधान में विश्वास करने के लिए अनुमति देना और फिर उनके अविवेकी और अमानवीय कार्यो के लिए उन्हें दोष लगाना और उनकी आलोचना करना सामजिक सुधार करने का अनुपयुक्त तरीका है।

 

लोगो के नीची जाती पर अमानवीय व्यवहार जैसे कार्य मात्र उन धर्म विश्वासों के परिणाम हैं, जो शास्त्रों द्वारा उनके मन में पैदा कर दिए गए हैं। लोग तब तक अपने आचरण में परिवर्तन  नहीं करेंगे जब तक वे शास्त्रों की पवित्रता में विश्वास करना नहीं छोड़ेंगे जिस पर उनका आचरण आधारित है। 

प्रत्येक स्त्री पुरुष को शास्त्रों के बंधन से मुक्त करवाइए , शास्त्रों द्वारा प्रतिष्ठित हानिकारक धारणाओं से उनके मष्तिष्क का पिंड छुडाइये, फिर देखिये वह आपके कहे बिना अंतर्जातीय खान पान और अंतर्जातीय विवाह का आयोजन करेंग। 

 

आपको हिन्दुओ से यह कहने का सहास दिखाना होगा की दोष उनके धर्म का है – वह धर्म जिसने आपमें यह धारणा पैदा की है कि जाति व्यवस्था पवित्र है।

ऐसा साहस जैसा चार्वाक ,बुद्ध और गुरु नानक ने किया था , उन शास्त्रों की उपेक्षा ही नहीं करने का साहस अपितु उन्हें नकार देने का साहस जिन पर जातिवाद का वट वृक्ष खड़ा है ।














 

 

नेकी कर पर “आशा ना कर”

नेकी कर दरिया में डाल यह एक प्रसिद्ध लोकोक्ति है।इसका अर्थ है,लोगों की साफ और भले मन से मदद करना,पर इसके बदले में किसी भी प्रकार की अपेक्षा न करना।

जब भी हम किसी इंसान की मदद करते है,तो हमने बदले में किसी प्रकार की मदद की अपेक्षा नही करनी चाहिए।मदद या दान खुले हाथों से की जानी चाहिए,पर इसके बारे में किसीको भी पता चलना